Trilochan poet biography
जन्मदिन विशेष: माटी की सोंधी सुगंध है तो कमजोर की आवाज़ है त्रिलोचन की कविताएं
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त्रिलोचन शास्त्री आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे. इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे.
देश के ये बंध तोड़ो
जाति के ये बंध तोड़ो
वर्ण वर्ण खिले सुमन दल
रुचिर रुचिर सुंगध जोड़ो
सीमाओं-जातियों के बंधन तोड़ने और विश्व की समस्त मानव जाति को भाईचारे के सूत्र में पिरोने की कामना करने वाले ये शब्द हैं कवि त्रिलोचन शास्त्री के.
हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाने वाले कवि त्रिलोचन शास्त्री का आज जन्मदिन है.
Trilochan Shastri: त्रिलोचन शास्त्री का जन्म 20 अगस्त, 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले (Sultanpur) के कटघरा चिरानी पट्टी गांव में हुआ था. त्रिलोचन शास्त्री का मूल नाम वासुदेव सिंह था. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Faith University) से एम.ए.
अंग्रेजी तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद आपने लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की. उन्हें हिंदी के अलावा अरबी और फारसी भाषाओं का भी ज्ञान था. कवि (Hindi Kavi) होने के साथ वे एक सफल पत्रकार भी थे. उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के छोटे से गांव से निकलकर त्रिलोचन शास्त्री ने हिंदी साहित्य, खासकर हिंदी काव्य को एक नई धारा दी.
उन्होंने हिंदी में प्रयोगधर्मिता का समर्थन और बाजारवाद का विरोध किया. उनका कहना था कि भाषा में जितने प्रयोग होंगे वह उतनी ही समृद्ध होगी. दर्जनों पुस्तकें लिखीं और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया.
त्रिलोचन शास्त्री की रचनाएं (Trilochan Shastri Ki Rachnaye)
त्रिलोचन शास्त्री आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे.
इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे.
शास्त्री 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. उन्होंने वाराणसी के ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था में काम किया. और हिंदी व उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुडे़ रहे.
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‘गुलाब और बुलबुल’, ‘उस जनपद का कवि हूं’, ‘दिगंत और धरती’ और ‘ताप के ताए हुये दिन’ जैसे चर्चित कविता संग्रह सहित त्रिलोचन शास्त्री के 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए.
उनका पहला कविता संग्रह धरती 1945 में प्रकाशित हुआ.
हिंदी कविता में सॉनेट के जन्मदाता
त्रिलोचन शास्त्री को हिंदी सॉनेट (Sonnet) का साधक और जन्मदाता माना जाता है.
उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की. सॉनेट (चतुष्पदी) के कारण उन्हें पहचान भी मिली. उन दिनों हिंदी में सॉनेट को विजातीय माना जाता था. लेकिन त्रिलोचन ने इसका भारतीयकरण किया. इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया.
सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया.
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सॉनेट एक काव्यात्मक रूप है, जो इटालियन कविता में उत्पन्न हुआ. यह धनु के साथ गायी जाने वाली कविता होती है.
कमज़ोर के पक्ष की आवाज़
त्रिलोचन शास्त्री ने भाषा शैली और विषयवस्तु सभी में अपनी अलग छाप छोड़ी.
उन्होंने वही लिखा जो कमज़ोर के पक्ष में था. उनकी कविताएं मेहनतकश और दबे कुचले समाज की एक दूर से आती आवाज़ थीं. उनकी कविता भारत के ग्राम और देहात समाज के उस निम्न वर्ग को संबोधित थी जो कहीं दबा था, कहीं जग रहा था, कहीं संकोच में पड़ा था. उसकी बानगी उनकी कविता
‘उस जनपद का कवि हूं’ में देखी जा सकती है.
उस जनपद का कवि हूं
जो भूखा दूखा है, नंगा है, अनजान है,
कला नहीं जानता कैसी होती है वह क्या है,
वह नहीं मानता कविता कुछ भी दे सकती है
बिस्तर है न चारपाई है कविता में उन्होंने मेहनतकश मजदूर की व्यथा को इस तरह बयां किया है-
बिस्तरा है न चारपाई है
जिन्दगी खूब हमने पायी है.
कल अंधेरे में जिसने सर काटा
नाम मतल लो हमारा भाई है.
ठोकरें दर-ब-दर की थी हम थे
कम नहीं हमने मुंह की खाई है.
सम्मान
त्रिलोचन शास्त्री को हिंदी अकादमी, दिल्ली (Hindi Academy Delhi) ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था.
हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे ‘शास्त्री’ और ‘साहित्य रत्न’ जैसे उपाधियों से सम्मानित किया गया. 1982 में ‘ताप के ताए हुए दिन’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला.
त्रिलोचन शास्त्री को उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार, हिंदी संस्थान सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार, सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद सम्मान से भी सम्मानित किया गया था.
9 दिसम्बर, 2007 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में उनका निधन हो गया.
August 20, 2021, 09:46 IST
त्रिलोचन की कविताओं में माटी की सोंधी सुगंध है तो कमजोर की आवाज़ भी
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